1992 मे ही पहले भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की राज्य काउंसिल हेतु 15 वी कांग्रेस मे चुनाव हुआ। अपने जिला मंत्री मिश्रा जी के कहने पर मैंने पार्सल बाबू शरद मोहन से चन्दा जमा करने और डेलीगेट्स के वापसी टिकट लेने मे सहयोग को कहा जो मिश्रा जी के नाम पर उन्होने सहर्ष दिया। हालांकि यह ताज्जुब वाली बात थी जो व्यक्ति अपनी बहन से मिलने नहीं आता और जिसे अपनी पत्नी के इलाज के लिए वक्त नहीं मिलता और जिन मिश्रा जी ने कथित रूप से गालियों की बौछार करके उन लोगों को अपने किरायेदार के रूप मे हटाया था उन्हीं मिश्रा जी पर इतनी मेहरबानी क्यों?
सम्मेलन और फिर अपने जिला सम्मेलन का विवरण अलग से 'विशेष राजनीतिक' गतिविधियों के अंतर्गत दे रहे हैं जो कुछ अंतराल के बाद क्रमवार प्रकाशित होता रहेगा। जिला सम्मेलन से पूर्व हम लोग दरियाबाद भी गए थे जैसा कि बड़ी ताईजी से तब वायदा किया था जब बड़े ताउजी के निधन के बाद मै वहाँ गया था। हालांकि उसके 06 माह बाद ताईजी का भी निधन हो गया था। रिज़र्वेशन गंगा-जमुना से आगरा सिटी से दरियाबाद का कराया था। गाड़ी रात को जाती थी लेकिन हम लोग मय सामान के शाम को ही शरद मोहन के क्वार्टर पर आ गए थे। खाना घर से ही खा कर चले थे परंतु शालिनी ने अपनी माता के कहने पर थोड़ा कुछ खा लिया था,यशवन्त ने भी चखा होगा ,मैंने तो सिर्फ चाय ही ली। गाड़ी आने से पहले शरद साहब ने किसी को भेज कर सामान उठाने मे मदद की थी वह स्टेशन पर ड्यूटी मे थे। अगले दिन हमने गाड़ी को लखनऊ स्टेशन पर छोड़ दिया क्योंकि उस दिन गाड़ी को सुल्तानपुर होकर जाना था। 'देहरा एक्स्प्रेस' पकड़ कर हम लोग दरियाबाद पहुंचे। स्टेशन से मथुरा नगर के घर पहुँच कर घोर ताज्जुब हुआ जब 'ताला' लगा देखा। बारामदे मे पड़े तख्त पर बैठ गए। मै डाक से वहाँ पहुँचने का पत्र ऋषिराज के नाम भेज चुका था। शालिनी का व्यंग्य था कि,क्या आपके घर की रस्म है बहुओं का स्वागत घर पहुँचने पर 'ताला बंद ' करके चले जाने से होता है? मैंने थोड़ी देर इन्तजार करने के बाद भी किसी के न आने पर 'रायपुर' सुरेश भाई साहब के घर जाने का निश्चय करा।
कुछ देर मे ऋषिराज आ गए ,वहाँ तब ऋषिराज और उमेश रहते थे तथा नरेश लखनऊ मे माधुरी जीजी के पास राजाजीपुरम मे।
क्रमशः......
सम्मेलन और फिर अपने जिला सम्मेलन का विवरण अलग से 'विशेष राजनीतिक' गतिविधियों के अंतर्गत दे रहे हैं जो कुछ अंतराल के बाद क्रमवार प्रकाशित होता रहेगा। जिला सम्मेलन से पूर्व हम लोग दरियाबाद भी गए थे जैसा कि बड़ी ताईजी से तब वायदा किया था जब बड़े ताउजी के निधन के बाद मै वहाँ गया था। हालांकि उसके 06 माह बाद ताईजी का भी निधन हो गया था। रिज़र्वेशन गंगा-जमुना से आगरा सिटी से दरियाबाद का कराया था। गाड़ी रात को जाती थी लेकिन हम लोग मय सामान के शाम को ही शरद मोहन के क्वार्टर पर आ गए थे। खाना घर से ही खा कर चले थे परंतु शालिनी ने अपनी माता के कहने पर थोड़ा कुछ खा लिया था,यशवन्त ने भी चखा होगा ,मैंने तो सिर्फ चाय ही ली। गाड़ी आने से पहले शरद साहब ने किसी को भेज कर सामान उठाने मे मदद की थी वह स्टेशन पर ड्यूटी मे थे। अगले दिन हमने गाड़ी को लखनऊ स्टेशन पर छोड़ दिया क्योंकि उस दिन गाड़ी को सुल्तानपुर होकर जाना था। 'देहरा एक्स्प्रेस' पकड़ कर हम लोग दरियाबाद पहुंचे। स्टेशन से मथुरा नगर के घर पहुँच कर घोर ताज्जुब हुआ जब 'ताला' लगा देखा। बारामदे मे पड़े तख्त पर बैठ गए। मै डाक से वहाँ पहुँचने का पत्र ऋषिराज के नाम भेज चुका था। शालिनी का व्यंग्य था कि,क्या आपके घर की रस्म है बहुओं का स्वागत घर पहुँचने पर 'ताला बंद ' करके चले जाने से होता है? मैंने थोड़ी देर इन्तजार करने के बाद भी किसी के न आने पर 'रायपुर' सुरेश भाई साहब के घर जाने का निश्चय करा।
कुछ देर मे ऋषिराज आ गए ,वहाँ तब ऋषिराज और उमेश रहते थे तथा नरेश लखनऊ मे माधुरी जीजी के पास राजाजीपुरम मे।
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आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'विद्यानिवास मिश्र' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
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