बुधवार, 14 दिसंबर 2011

आगरा /1992 -93 ( विशेष राजनीतिक भाग- 1 )

1992 मे भाकपा की 15 वी राज्य कांग्रेस आगरा मे करने का निर्णय लिया गया और इच्छा न होते हुये भी कामरेड रमेश मिश्रा जी ने राज्य सचिव कामरेड जगदीश नारायण त्रिपाठी जी का प्रस्ताव/निर्देश मान लिया। मिश्रा जी चूंकि अब तक रमेश कटारा साहब के पूरे प्रभाव मे आ चुके थे अतः उन्हे ही तैयारी हेतु इंचार्ज के रूप मे रखा। मै सतर्क था अतः मैंने मिश्रा जी से अनुरोध किया कि राज्य-सम्मेलन हेतु एक अलग बैंक अकाउंट खुलवा लें जिसे उन्होने अस्वीकार कर कर दिया। अतः मैंने राज्य-सम्मेलन से संबन्धित आय-व्यय के रजिस्टर मे रुपए जमा करने वालों के भी हस्ताक्षर लेने का कालम बना लिया। कटारा साहब ने जिनके जरिये मिश्रा जी रुपए जमा करवाते थे इस बात का ऐतराज किया ,उनका दृष्टिकोण था जब खर्च के लिए रुपए निकालेंगे तब हस्ताक्षर करेंगे ,जमा करने वाला क्यों करे?अंततः मिश्रा जी के कहने पर उन्हें मानना पड़ा।

हम लोगों पर भी मिश्रा जी ने दायित्व डाला था कि सम्मेलन हेतु धन-संग्रह मे सहयोग करें। मुझे मांगने की आदत थी ही नहीं परंतु पार्टी का कार्य था तो फर्ज भी निबाहना ही था। हींग की मंडी के सेठ जी और उनके परिचितों से जिक्र किया तो रु 50/-50/-उन लोगों ने चन्दा दे दिया। भाजपाई होते हुये भी उन लोगों को पहली बार  भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की रसीद पर चन्दा देना पड़ा। चूंकि मिश्रा जी पार्सल बाबू शरद मोहन को अपने मकान मे किराये पर रख  चुके थे उन्हें जानते थे उनके माध्यम से मुझे चन्दा संग्रह करने का उन्होने सुझाव दिया। शरद मोहन से मैंने मिश्रा जी की बात बताई तो वह सहर्ष मदद करने को तैयार थे। रसीद बुक उन्हें थमा दी ,उन्होने अपने पार्सल दफ्तर मे बैठे-बैठे व्यापारियों से धन संग्रह करके मुझे कुछ दिनों बाद सौंप दिया और मैंने मिश्रा जी को । धन लेते और देते समय दोनों बार मै संबन्धित कामरेड के हस्ताक्षर रजिस्टर पर लेता था अतः मिश्रा जी को भी इसी प्रक्रिया से दिया।

जैसे-जैसे सम्मेलन की तारीखें नजदीक आ रही थीं कटारा साहब और बाकी कामरेड्स के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही थीं। इसी कारण मिश्रा जी ने त्रिपाठी जी से विशेष अनुमति मांग ली कि वह आगरा का जिला सम्मेलन ,राज्य -सम्मेलन के बाद करवाएँगे। मिश्रा जी कटारा साहब को राज्य-कार्यकारिणी समिति मे रखवाने के इच्छुक थे लेकिन आगरा मे पुराने और वरिष्ठ कामरेड्स कटरा साहब को राज्य हेतु प्रतिनिधि तक नहीं बनने देना चाहते थे। मिश्रा जी के पुराने सभी शिष्य जिनहोने अतीत मे उनके गलत-सही सभी निर्णयों मे उनके कंधे से कंधा मिला कर साथ दिया था कटारा साहब के मुद्दे पर उनके विरुद्ध लामबंद थे। कोशाध्यक्ष के पद पर होने के कारण मुझ से सभी का संपर्क था। उन सब ने मुझ से कहा कि,माथुर साहब आपकी ईमानदारी निसंदिग्ध है और इसी लिए चौहान साहब ने आपको अपना उत्तराधिकारी चुना है अतः मिश्रा जी से मधुर सम्बन्धों के बावजूद आपको अपना नैतिक दायित्व भी निबाहना है। उन लोगों का तर्क था कि यह पार्टी का कार्यक्रम है ,मिश्रा जी के परिवार का नहीं,कटारा अनाप-शनाप पानी की तरह धन बहा रहा है और कार्यक्रम के बाद मिश्रा जी आप पर दबाव डाल सकते हैं आप डटे रहेंगे तो हम सब आपके पीछे रहेंगे।

01 से 04 मार्च तक राज्य सम्मेलन 'माथुर-वैश्य सभा भवन',पंचकुयिया ,आगरा मे सम्पन्न हुआ। मिश्रा जी ने मुझे सब से अलग-थलग रखने की रण-नीति के तहत आने वाले डेलीगेट्स के वापसी टिकटों का इंतजाम करने का दायित्व सौंपा और इसमे भी पार्सल बाबू शरद मोहन ने अपने तरीके से मदद दिलवा दी। कामरेड चतुरानन मिश्रा जी ने सिर्फ अपना IC नंबर दिया था और उनके लिए 'ताज एक्स्प्रेस' से दिल्ली का रिज़र्वेशन कराना था। काउंटर क्लर्क ने उनका रिज़र्वेशन करके कोच एवं सीट नंबर बता दिया जिसे मैंने उन्हें सूचित कर दिया।

कटारा साहब के चक्कर मे कभी मिश्रा जी का कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह से कोई मन-मुटाव हुआ होगा और वह अक्सर उन्हें कोसते रहते थे। त्रिपाठी जी पद छोडना चाहते थे और आर बी सिंह जी इस पद के दावेदार माने जा रहे थे। अतः मिश्रा जी उनके विरुद्ध लाबीइंग करते रहते थे। मिश्रा जी ने उन्हें बुरा-भला कहने की कवायद मे एक बार यह भी कहा था कि वह आगरा के जिला मंत्री हैं तो भी सिंह साहब उन्हें महत्व नहीं देते जबकि 'बाराबंकी का गधा' भी आ जाएगा तो वह उसे महत्व देते हैं। बात यह थी कि बाराबंकी के पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ सिंह साहब ने त्रिपाठी  जी की बैठक रखी थी जो बंद दरवाजे के भीतर हो रही थी। मिश्रा जी त्रिपाठी जी को अपना आदमी मानते थे अतः दरवाजा खोल कर घुस गए और रामचन्द्र बक्श  सिंह साहब ने उन्हें बाहर जाने को कह दिया। यह बात मिश्रा जी ने गांठ बांध कर रख ली थी।


कार्यक्रम के तीसरे दिन सिंह साहब को कोई पुस्तिका सम्मेलन मे बंटवानी थी वह प्रेस मे हुई त्रुटियों को सुधार रहे थे उन्हें कागज काटने हेतु ब्लेड अथवा चाकू की आवश्यकता थी और तलाश मे थे। मैंने हलवाई से एक नया चाकू ला कर उन्हें दे दिया जिससे उन्होने कागजों को अलग-अलग कर लिया। इसी दौरान उन्होने मुझसे मेरा परिचय पूंछा क्योंकि उन्हें ताज्जुब था कि आगरा मे कोई कामरेड उन्हें क्यों सहयोग कर रहा है जबकि बाकी मिश्रा जी के भय से उनसे दूरी बनाए हुये हैं। पार्टी पद का उल्लेख करते हुये मैंने उन्हें बताया कि मै तो बहौत छोटा कार्यकर्ता हूँ। मैंने उनसे पूंछा कि क्या आप राय धर्म राज बली माथुर और राय जगदीश राज बली माथुर को जानते हैं?उनका जवाब था बेहद अच्छी तरह से और पूंछा तुम्हारा उनसे क्या संबंध है?मैंने स्पष्ट किया कि धर्म राज बली साहब मेरे बाबूजी के चाचा होने के कारण बाबाजी और जगदीश जी बाबूजी के बड़े भाई होने के कारण ताऊ जी होते हैं। कामरेड राम चंद्र बख्श सिंह जी यह परिचय जान कर बेहद खुश हुये और बोले तभी तुमने मेरी मदद कर दी,यहाँ आगरा के लोग तो बड़े रूखे होते हैं । तुम तो हमारे बाराबंकी के हो पहले क्यों नहीं मिले। मैंने कहा आप राज्य के बड़े नेता हैं और मै मामूली कार्यकर्ता। उनका जवाब था हमारे बाराबंकी के हो यह क्या कम था। उन्होने आश्वासन दिया पार्टी मे जब कभी तुम्हें मेरी जरूरत हो बेझिझक कहना पूरी मदद करूंगा। ........ 

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