शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

आगरा /1992 -93 (राजनीतिक विशेष -भाग- 2 )

गतांक से आगे....
पूर्व-पश्चिम के कार्यकर्ताओं मे वैभिन्य था और कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह को पश्चिम के कामरेड्स का समर्थन न मिल सका अतः उन्होने कामरेड मित्रसेन यादव का समर्थन किया जिनहे सर्व-सम्मति से राज्य-सचिव चुन लिया गया। आगरा से जो 5 कामरेड्स राज्य-काउंसिल हेतु चुने गए उनमे मिश्रा जी अपने परम-प्रिय कटारा को स्थान न दिला सके। केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमेन कामरेड काली शंकर शुक्ला जी से व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर मिश्रा जी ने कटारा को उत्तर-प्रदेश कंट्रोल कमीशन का सदस्य नामित करवा लिया। कोई कुछ बोल तो न सका परंतु मिश्रा जी ने ऐसा करके अपने सभी हितैषियों को अपने विरुद्ध कर लिया।

राज्य-सम्मेलन समाप्ती के बाद आगरा के जिला सम्मेलन की तैयारी होना था। मिश्रा जी ने मुझ से कहा कि,अपने ज्योतिष से गणना करके जून के महीने मे दो तारीखें बताओ जिससे सम्मेलन शांतिपूर्ण हो जाये ,राज्य सम्मेलन मे तो काफी तनाव रहा। मैंने पत्रा देख कर उन्हे मध्य जून की दो तारीखें बता दी उन्हीं मे उन्होने जिला सम्मेलन करने की घोषणा की। राज्य-सम्मेलन के आय-व्यय का विवरण तैयार होने पर मिश्रा जी भड़क गए क्योंकि लगभग रु 6000/-अधिक (EXCESS ) निकल रहे थे। अकाउंट्स का थोड़ा भी जानकार समझ सकता है कि धन का बच जाना (एक्सेस) क्राईम है जबकि कम पड़ना (शारटेज) होना आम बात है।

मिश्रा जी का भारी दबाव था कि मै अपने अकाउंट्स ज्ञान का प्रयोग करके इस विवरण को इस प्रकार एडजस्ट कर दूँ कि EXCESS न रहे। ईमानदारी और पार्टी के प्रति वफादारी का तकाजा था कि विवरण को जैसे का तैसा रखा जाये और वही मैंने किया भी,चर्चा करने पर मिश्रा जी के सहयोगी और विरोधी सभी मुझसे सहमत थे। इस विवरण को मुद्दा बना कर मिश्रा जी ने मुझे परेशान करने की तिक्ड़मे की तो मैंने उनकी हिदायत की अवहेलना करते हुये राज्य-सम्मेलन के विवरण पर बची रकम को बैंक मे जमा करा दिया उसी अकाउंट मे जिसमे जिले का धन रहता था। अब तो मिश्रा जी एक प्रकार से मेरे शत्रु ही हो गए। कामरेड सरदार रणजीत सिंह काफी पुराने थे और सबके सब हाल जानते थे और उनकी उपेक्षा थी ,मुझसे बोले इस विषय पर पूरी तरह अड़े रहो इस बार मिश्रा एक ईमानदार आदमी से टकरा रहा है उसकी करारी हार हो जाएगी। वह मुझे सुबह 7 बजे मलपुरा ले चलने हेतु मेरे घर पर 6 बजे दयालबाग से आ गए। दोनों अपनी-अपनी साइकिलों से 16 km चले,उनके लिए 72-73 वर्ष की आयु मे इतनी दूर साइकिल से आना-जाना मुश्किल था किन्तु पार्टी-हित मे उन्होने यह कष्ट भी सहा। मलपुरा शाखा पार्टी की सबसे ज्यादा संख्या वाली शाखा थी और पार्टी मे उनका बहुमत भी था। उस शाखा के वरिष्ठ नेताओं से उन्होने संपर्क किया और वस्तु-स्थिति बताई ,सभी ने इस विषय मे मिश्रा जी का विरोध करने और जरूरत पड़ने पर उन्हें जिला सम्मेलन मे हटा देने की बात कही। उन लोगों का कहना था वे सब मिश्रा जी के समर्थक माने जाते हैं इसलिए उनके प्रस्तावों का कामरेड जवाहर सिंह धाकरे विरोध करते हैं अतः उनका भी समर्थन हम लोग प्राप्त कर लें। कामरेड किशन बाबू श्रीवास्तव बाह के थे और वहीं के कटारा साहब भी थे बल्कि वही उन्हें पार्टी मे लाये थे किन्तु उन्होने श्रीवास्तव साहब को उनकी शाखा के मंत्री पद से हटवा दिया था क्योंकि उनकी छवी धाकरे साहब के पिछलग्गू की थी। लिहाजा हम लोगों ने उनसे संपर्क कर के धाकरे साहब से बात करने की जरूरत बताई। डॉ धाकरे तब R.B.S.कालेज के प्रिंसिपल थे उनके कार्यालय मे सरदारजी ,श्रीवास्तव साहब और मै मिले और उन्होने सहर्ष अपना समर्थन दे दिया। कभी भी अपने कालेज -निवास पर मिलने आने की बात भी उन्होने कही जहां ठीक से बात कर सकें।

मिश्रा जी के साथ ज़मीनों का धंधा करने वाले कामरेड पूरन खाँ जो उनके घर मे भी गहरे घुसे हुये थे और उनके सम्पूर्ण परिवार से सहानुभूति रखते थे,मुझसे लगातार कह रहे थे कि मिश्रा जी के परिवार को बचाओ कटारा उनके परिवार को तबाह करना चाहता है और वह कटारा प्रेम मे डूबे हुये हैं। कामरेड दीवान सिंह भी मिश्रा जी के एहसानमंद थे और वह भी उनके परिवार को कटारा से बचाना चाहते थे। मिश्रा जी के साथ जूते की फेकटरी खोलने वाले कामरेड नेमीचन्द भी उनके खैरख्वाह थे और भलीभाँति जानते थे कि उस फेकटरी को फेल करने मे कटारा और उनके बेटे का पूरा-पूरा हाथ था। इन लोगों का कहना था कि कटारा ने किसी तांत्रिक प्रक्रिया से मिश्रा जी को वशीभूत कर लिया है,पार्टी तो सम्हाल ली जाएगी और मिश्रा जी के बगैर भी चलती रहेगी किन्तु उनका परिवार बुरी तरह बिखर जाएगा। लिहाजा कटारा को काबू करने के लिए मिश्रा जी को हटाना जरूरी हो गया था। मलपुरा के कामरेड्स को भी मिश्रा जी से व्यक्तिगत सहानुभूति थी और वे भी कटारा से मुक्ति की मुहिम मे मिश्रा जी को पदच्युत करने के हामी थे। ...... 

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2 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया आलेख,..अच्छा लगा ,.....

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
    अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
    भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
    हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  2. गुरूजी प्रणाम --वैसे कामरेड लोग किसी तंत्र - मन्त्र में विश्वास नहीं करते !किन्तु मीटिंग में यह भी हावी रहा ! बहुत ही सठिक ढंग से अंदरूनी कलह को , आपने उजागर किया है !

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