बुधवार, 21 दिसंबर 2011

आगरा /1992-93(राजनीतिक विशेष-भाग-4 )

गतांक से आगे.....
हम लोगों ने मलपुरा के ग्राम प्रधान कामरेड ओमप्रकाश को मिश्रा जी के विरुद्ध जिला मंत्री पद पर खड़े होने को राजी कर लिया था। किन्तु मिश्रा जी ने अपना चक्र चला कर उन्हे पीछे हटने को राजी कर लिया ,मुझे इन बातों की खबर न थी। लेकिन मिश्रा जी के पारिवारिक हितैषी कामरेड्स ज्यादा चतुर थे,उन्होने मिश्रा जी के ही घनिष्ठ साथी नेमिचन्द को तैयार कर लिया था,ओम प्रकाश जी ने भी उन्हें समर्थन देना स्वीकार कर लिया था । इस कहानी की खबर न मुझे थी न मिश्रा जी को। राज्य-पर्यवेक्षक के रूप मे कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह के स्थान पर राज्य सचिव का मित्रसेन यादव द्वारा पूर्व राज्य-सचिव का जगदीश त्रिपाठी(जिंनका 17 दिसंबर 2011को लखनऊ मे निधन हुआ है) ,पूर्व सह-सचिव का अशोक मिश्रा(जो बाद मे राज्य  सचिव भी रहे) और आगरा क्षेत्र के इंचार्ज का डॉ गिरीश(वर्तमान राज्य सचिव) को संयुक्त रूप से भेजा गया था। मिश्रा जी खुश थे कि इन लोगों की मौजूदगी मे वह अपनी कलाकारी दिखा लेंगे।

पहले दिन की सम्मेलन कारवाई के बाद बाह मे ही एक जनसभा भी रखी गई थी। दिन मे सचिव की रिपोर्ट के बाद प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखे थे और कहीं से भी मिश्रा जी को यह आभास नहीं मिला था कि कोई भी उन्हें हटाने की कारवाई कर सकता है ,मुझे भी यही लगा था कि मिश्रा जी ही पुनः पदारूढ़ होने जा रहे हैं। डॉ रामनाथ शर्मा और एडवोकेट सुरेश बाबू शर्मा तो खिन्न होकर आगरा वापस लौट भी गए थे। वे मुझे भी लौट चलने का दबाव बना रहे थे परंतु मै साधारण प्रतिनिधि के साथ-साथ तब तक कोशाध्यक्ष के पद पर था और इस तरह सम्मेलन का बहिष्कार करना भी मुझे पसंद नहीं था लिहाजा मै उनके साथ न जाकर अगले दिन के लिए वहीं रुका रहा था । परंतु मै सभा-मंच पर न बैठ कर सामने मैदान मे दरी पर दूसरे प्रतिनिधियों ,स्थानीय कार्यकर्ताओं एवं आम जनता के साथ बैठा था। संचालन कर रहे का हर विलास दीक्षित से मिश्रा जी ने अनाउंस करवाया कि समस्त कार्यकारिणी सदस्य मंच पर आ जाएँ ,मुझे छोड़ कर सभी पहले से ही मंच पर मौजूद थे। मै दरी पर ही बैठा रहा किन्तु सभा प्रारम्भ करने से पूर्व मिश्रा जी के इशारे पर का दीक्षित ने नाम लेकर कहा कि,का  विजय राज बली माथुर से आग्रह है कि तुरंत मंच पर अपना स्थान ग्रहण कर लें। मुझे आखिरकार मंच पर जाना ही पड़ा ,मिश्रा जी ने कहा भई आज तक तो आप कार्यकारिणी मे हैं ही नीचे क्यों बैठ गए थे?मैंने मौन रहना ही मुनासिब समझा।

बोलने के लिए पुकारे जाने पर भी मैंने अति सूक्ष्म भाषण ही दिया। रात्रि  भोजन के बाद वहीं ठहरने का प्रबंध था। गर्मी का मौसम था अतः मै दो एक लोगों के साथ खुली छत  पर ही रहा कमरों मे पंखों की हवा से बाहर की खुली हवा अच्छी थी। देखा-देखी काफी कामरेड्स छत  पर ही आ गए। अगले दिन खुली छत पर ही नहाना हुआ ,कौन कितनी देर तक गुसलखाना खाली होने का इंतजार करे। अधिकांश लोगों ने इसी प्रक्रिया का अनुसरण किया और शायद महिला कामरेड्स ने ही बाथरूम का प्रयोग किया। नाश्ते के बाद सम्मेलन की कारवाई प्रारम्भ हो गई ,बचे हुये लोगों ने अपनी-अपनी बात रखी। मै खुद भी नहीं बोलना चाहता था और शायद मिश्रा जी भी यही चाहते थे कि मै न बोलूँ। मुझे सम्मेलन के मिनिट्स लिखने का दायित्व सौंप दिया गया था।
दिन के भोजन के बाद मिश्रा जी ने नई जिला काउंसिल का पेनल पेश किया जो सर्व-सम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इससे मिश्रा जी बिलकुल निश्चिंत हो गए कि वह पुनः निर्विरोध जिला मंत्री बनने जा रहे हैं।

चाय पान के बाद नई जिला काउंसिल की बैठक हुई जिसमे मिश्रा जी ने बतौर ड्रामा कहा कि वह काफी थक गए हैं और पद छोडना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद थी कि पूर्व की भांति कामरेड्स उनसे विनती करेंगे कि उनका कोई विकल्प नहीं है(जैसा कामरेड सी राजेश्वर राव की उपस्थिती मे भी  हुआ था) अतः वही जिला मंत्री बने रहें। उनकी आशा के विपरीत किसी ने उनसे ही दूसरा नाम सुझाने का अनुरोध कर दिया। अब तो मिश्रा जी को काटो तो खून नहीं। मजबूरन उन्होने अपने विश्वस्त साथी और आड़ीटर कामरेड जगदीश प्रसाद का नाम ले दिया किन्तु उन्होने तत्काल कह दिया कि वह बलि का बकरा नहीं बनेंगे। मुझसे सम्मेलन मे मिश्रा जी द्वारा नया पेनल पेश करने के दौरान कान मे आकर उनके ज़मीनों के धंधे के साथी कामरेड पूरन खाँ ने कहा था कि पेनल का विरोध न करवाना का ओमप्रकाश पीछे हट गए हैं उनके स्थान पर नेमीचनाद का नाम आ रहा है ,आप समर्थन कर देना। मिश्रा जी के ही दूसरे विश्वस्त का दीवान सिंह ने का नेमीचन्द का नाम प्रस्तावित कर दिया जिसका तालियों की गड़गड़ाहट ने समर्थन कर दिया । अब तो मिश्रा जी की जमीन छिन चुकी थी। उन्होने तत्काल सहायक जिलामंत्री पद हेतु का दीवान सिंह का नाम ले दिया यह कहते हुये कि आपने का नेमीचन्द को जिला मंत्री बनवाया है उन्हें कामयाब बनाना आप ही की ज़िम्मेदारी है अतः आप उनके सहायक जिला मंत्री होंगे। सबने समर्थन कर दिया। मिश्रा जी ने का नेमीचन्द को सुझाव दिया कि एक पदाधिकारी पुराना भी होना चाहिए अतः का माथुर को कोशाध्यक्ष बनाए रखें। ऐसा ही हुआ भी । राज्य-केंद्र के तीनों पर्यवेक्षकों के लिए हस्तक्षेप का प्रश्न ही नहीं था कहीं कोई विरोध हुआ ही नहीं और मिश्रा जी अपनी ही बिछाई बिसात पर मुंह की खा गए।मुझे  मक्खी की तरह मसल डालने और हरा देने के उनके  दावे धरे के धरे रह गए। कटारा का कुसंग उन्हें ले डूबा।सबसे बड़ी बात यह थी कि यह मिश्रा जी के विरोधियों की जीत नहीं थी बल्कि उन्हीं के पारिवारिक हितैषियों ने उनके ही परिवार को बिखरने से बचाने हेतु उन्हें पदच्युत किया था। किन्तु मिश्रा जी अभी भी जागे नहीं थे......... 

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1 टिप्पणी:

  1. बहुत बढ़िया! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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