सोमवार, 23 अप्रैल 2012

आगरा/1994 -95 /भाग-14

अजय के भी वापिस लौट जाने के बाद यशवन्त और मै दो ही लोग रह गए थे। वह सुबह साढ़े सात बजे के स्कूल के लिए घर छोडता था फिर साढ़े बारह बजे लौट कर खाना खा कर मेरे साथ ही हींग-की-मंडी दुकानों पर चलता था। कुछ किताबें साथ रख लेता था और दिन मे बाजार से ही होम वर्क कर आता था। सभी दूकानदारों ने उसे अपने साथ लाने की छूट मुझे दे दी थी। सिन्धी दुकानदार कर्मचारियों को चाय देते थे अतः कभी-कभी यशवन्त के लिए भी भिजवा देते थे। साधी आठ बजे तक घर वापिस आ पाते थे ,सुबह ही सब्जी अधिक बना लेते थे रात को रोटी सेंक लेते थे। खाते-खाते यशवन्त को गहराकर नींद आने लगती थी,उसे फिर सुबह सवासात बजे घर छोडना होता था। उसे सब 12 -साढ़े बारह घंटे का दबाव पड़ता था। मै तो मेक्सवेल पर 4 घंटे +रेकसन पर 1 घंटा +वाकमेक्स पर 1 घंटा काम कुल 6 घंटे का जाब करता था लेकिन यशवन्त को यह सारा समय मेरे साथ बिताना पड़ता था। उसे घर पर अकेला कैसे छोड़ा जा सकता था। मैंने डॉ शोभा को टटोलने हेतु पूछा था कि पिछले साल तुमने बउआ से यशवन्त को ले जाने की बात काही थी अब ले जाओ। लेकिन उन्होने अब उसे ले जाने से यह कह कर इंकार कर दिया था कि तुम अकेले रह जाओगे,इसलिए अब नहीं ले जाएँगे।

कभी-कभी न्यू आगरा स्थित शिव नारायण कुशवाहा की सब्जी की दुकान पर (जो उन्होने सपा पूर्वी विधान सभा क्षेत्र का अध्यक्ष होने के नाते पार्टी कार्यालय बना रखी  थी ) चला जाता था। शिव नारायण मुझसे पहले भाकपा छोड़ आए थे। एक बार एक मीटिंग के बाद उन्होने कमलानगर मे ही रहने वाले अशोक सिंह चंदेल साहब से मुलाक़ात करा दी जो उनके साथ महामंत्री थे। चंदेल साहब ने कहा कि लड़के को बाजार साथ क्यों ले जाते हो उनके घर छोड़ दें उनकी बेटियाँ बड़ी हैं उसे भी पढ़ा देंगी। लेकिन वह कहीं किसी दूसरी जगह मुझे छोड़ कर रुकता ही नहीं था। मेरे साथ ही उनके घर जाता और लौटता था। आस-पास के तथाकथित सवर्ण लोगों के मुक़ाबले बेकवर्ड चंदेल साहब और कुशवाहा साहब का व्यवहार बहुत अच्छा था। आस-पास के लोगों ने तो कुछ लोगों को उकसा कर तमाम दलाल और ग्राहक भेजे जो मेरा मकान खरीदना चाहते थे। दलील यह थी कि दो लोग इतने बड़े मकान का क्या करेंगे?इन कुराफातियों से भी निपटना होता था, घर का सारा काम भी करना होता था और बाजार मे तीन दूकानदारों की 5 बेलेन्स शीट भी बनानी  थी।अपने ही रिशतेदारों से शह प्राप्त आस-पास के लोगों ने उस अफवाह को खूब तेजी से उड़ाया और फैलाया ताकि मै भयभीत होकर मकान बेच जाऊ।  न कायर था न डरपोक, न किसी के आगे झुकता था। सब से अकेले दम पर 'ईंट का जवाब पत्थर से' की तर्ज पर मुक़ाबला किया और हर बार करारा जवाब दिया।

बिमला जीजी (जो रिश्ते मे बाबूजी की भांजी थीं एवं बउआ की सहेली भी क्योंकि लखनऊ-ठाकुर गंज मे नाना जी उनके पिता श्री के मकान मे किरायेदार रहे थे )ने मुझे सूचित किए बगैर अपने किसी देवर जो मथुरा मे थे को अपनी विधवा बेटी का पुनर्विवाह मुझसे करने का सुझाव दिया जो आए तो घर मे ताला देख कर बगल वाले शर्मा जी के घर पहुँच गए। शर्मा जी की मिसेज भी मथुरा की थीं उन लोगों को चाय नाश्ता कराया। शर्मा जी ने उन्हें झूठा बहकाया कि मकान दोनों भाइयों का है पता नहीं ऊपर नीचे बंटवारा होगा या एक-एक कमरा ऊपर व नीचे का बटेगा। उनसे मिलने के बाद उन्होने मुझे पत्र भेजा और यह सब बातें सूचित कीं।

इस दौरान पटना से सहाय साहब( जिन्हें मैंने बउआ के निधन की सूचना भी प्रेषित कर दी थी )ने मेरे माता-पिता के निधन पर खेद व्यक्त करते हुये अपना घर का फोन नंबर लिख भेजा था और फोन पर संपर्क बनाए रखने को कहा था। मेरे पास फोन था नहीं अतः वह दुकान पर मुझे करते थे। हींग-की -मंडी के ही एक दुकानदार (जिनके यहाँ मै जाब नहीं करता था एक मकान छोड़ कर किराये पर रहते थे और जिनहोने बउआ की बीमारी के दौरान अजय व शोभा से संपर्क करने हेतु अपने घर का नंबर प्रयोग कर लेने को कह दिया था )से मैंने सहाय साहब का फोन आने पर बात कराने की सुविधा प्रदान करने का अनुरोध किया और उन्होने सहर्ष स्वीकृति दे दी थी । एक बार जब घर पर उनके पास फोन आया मै हींग -की -मंडी मे ही था उनकी श्रीमतीजी ने अपनी दुकान का नंबर दे दिया। पटना से फोन आने पर उन्होने मुझे अपनी दुकान पर बुलवा कर बात करा दी। वह पटना मुझे बुलवाकर बात करना चाहते थे मैंने घर और शहर छोड़ कर जाने मे असमर्थता स्पष्ट कर दी जिस पर उन्होने कहा कि हम अपना आदमी भेजेंगे और पंजाबी जी को सूचना दे देंगे। 

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2 टिप्‍पणियां:

  1. गुरूजी प्रणाम ....पढ़ कर दिल भर आया ! सोंचता हूँ ! आप का भी जीवन संघर्ष मई रहा है !

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    1. शॉ साहब 'संघर्ष ही जीवन है',इस संघर्ष की ही ताकत है जो आज ये सब बातें सब के सामने रख सक रहा हूँ। मै इसलिए नहीं सार्वजनिक कर रहा हूँ कि,मै कोई ऐसा व्यक्ति हूँ जिसने कोई महान कार्य किया हो जो सब को जानना चाहिए। न ही मेरा जीवन कोई दृष्टांत प्रस्तुत कर सकेगा जिससे और लोग भी लाभ उठा सकें। मै ये सब जानकारी देकर यह बताना चाहता हूँ कि आज के घोर आपा-धापी,स्वार्थ-तिरस्कार के युग मे भी सच्चाई और ईमानदारी पर चल कर समाज मे टिके रहा जा सकता है। शर्त यह है कि हमारे खुद के 'मन,वचन और कर्म'मे अन्तर न हो। जहां मै असफल रहा उससे दूसरों को बचने का अवसर मिल सकता है और यदि मै कहीं सफल रहा तो और लोग भी उस प्रकार सरलता से सफल हो सकें। इनही उद्देश्यों से यह लिखावट जारी है। हालांकि इससे भयभीत निकटतम रिश्तेदार ब्लाग जगत मे भी मेरे तथा पुत्र यशवन्त के लिए मुसीबतें खड़ी करने का प्रयास कर रहे हैं। पत्नी,पुत्र और मेरे विरुद्ध सुनियोजित घृणित अभियान लगातार चलाया जा रहा है। देखते हैं कहाँ तक मुक़ाबला कर सकते हैं?

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