शनिवार, 10 मार्च 2012

आगरा/1992-93/भाग-7

बढ़ती मंहगाई का मुक़ाबला करने का एक ही तरीका था कि और अतिरिक्त पार्ट टाईम जाब पकड़ा जाये और यही करना पड़ा। स्टेट बैंक के एक कर्मचारी से कुछ प्रगाढ़ता हो गई थी वह मुझसे ज्योतिषीय सलाह ले लेते थे। मैंने उनसे अपने परिचय के आधार पर किसी दुकान पर पार्ट टाईम दिलाने को कहा था। उन्होने 'ईस्टर्न शूज'के मोहन लाल भागवानी जी से कहा जिनकी दुकान शंकर लाल जी की 'मेक्सवेल ट्रेडर्स' के सामने ही थी। उन्होने डेढ घंटे सुबह और डेढ़ घंटे शाम को कुल तीन घंटों के वास्ते रु 1200/- मजदूरी प्रदान की। अब कुल नौ घंटों का जाब था और राजा-कि-मंडी भाकपा कार्यालय भी जाता ही था। नए जिला मंत्री को पूरा सहयोग देना मेरे लिए जरूरी था। इन परिस्थितियों मे अब सिटी स्टेशन जाकर वहाँ का हाल-चाल पता करने जाना  मेरे लिए संभव न था।  अतः कभी कभार रविवार को शालिनी यशवन्त को लेकर मेरे साथ साईकिल पर वहाँ जाती थीं। ऐसे ही एक बार जाने पर पता चला कि शरद मोहन राजा-कि-मंडी पर ही क्वार्टर एलाट कराना चाहते हैं। वहाँ क्वार्टर मिलने पर बदलने मे मै उन लोगों की मदद करूँ ऐसी ख़्वाहिश जाहिर की गई।

हालांकि कभी भी उन लोगों से हमे किसी प्रकार की कोई मदद नहीं प्राप्त हुई थी और आगे भी किसी प्रकार की उम्मीद करना व्यर्थ था फिर भी निस्स्वार्थ मदद करने का हम लोगों का स्वभाव होने के कारण मदद कर देता था जिसे शायद और लोगों की तरह वे लोग भी हमारी कमजोरी के रूप मे ही लेते थे। अंदाज से जो तारीख बताई गई थी उस दिन शालिनी और यशवन्त को सिटी स्टेशन छोड़ कर मै दुकानों पर गया था और शाम के तीनों पार्ट टाईम छोड़ कर जल्दी लौट रहा था कि घटिया आजम खा चौराहे पर शालिनी अपनी भाभी संगीता और यशवन्त के साथ रिक्शा पर सिटी से राजा-कि-मंडी जाती हुई मिली। उन लोगों ने बताया कि मै राजा-कि-मंडी के क्वार्टर पर ही चलूँ। वहाँ शरद के बनवारी लाल ताऊ जी ही अकेले थे। शालिनी और यशवन्त तथा मै भी वहाँ रुक गए एवं संगीता फिर सिटी के क्वार्टर पर लौट गई। बाद मे ट्रक पर सामान के साथ संगीता,उनकी बेटियाँ और सास पोर्टरों के साथ पहुंचे। हमेशा की तरह शरद मोहन तो ड्यूटी मे मशगूल थे,ऊपरी धंधे का जो सवाल था,छुट्टी कैसे लेते?मौसम गर्मी का था फिर भी सब की थकान उतारने हेतु चाय और रस्क एक दुकान से मैंने ला दिये जिसका भुगतान मुझे शालिनी की माताजी दे रही थीं परंतु मैंने इस बार कोई भुगतान नहीं लिया। चंडीगढ़ मे पी जी आई की केंटीन के बाद यह दूसरा मौका था जब मैंने अपनी तरफ से खाना या चाय का भुगतान किया था वर्ना मुझे तुरंत पेमेंट दे दिया जाता था।

चूंकि मै रोजाना सुंदर होटल , राजा-कि-मंडी स्थित भाकपा कार्यालय  जाता था अतः क्वार्टर नजदीक होने के कारण मुझसे यह अनुरोध किया गया कि लौटते मे कभी-कभी हाल-चाल लेता जाऊँ। वस्तुतः उद्देश्य यह था कि जब कभी शरद मोहन अपनी माँ को लेकर मुज्जफर नगर जाएँ तो शालिनी एक -दो राउंड वहाँ के चक्कर लगा जाएँ ऐसी सूचना दी जा सके। इसी क्रम मे गर्मियों की छुट्टियों के दौरान वे लोग गए तब रविवार को शालिनी को लेकर वहाँ गए। यह क्वार्टर काफी बड़ा था और तीन कमरे थे। खाने के बाद दोपहर मे टी वी देख कर जब सब बच्चे एक कमरे मे सो गए तब दूसरे कमरे मे बाकी लोग बाते करते रहे।





 इनही बातों के बीच ऋषि राज की शादी की बात उठने पर (ऋषि की सुसराल के एक चचिया सुसर शरद के फूफाजी थे) शालिनी ने संगीता से  कहा तब आपको जो सलवार-सूट लखनऊ  से लाकर दिया था वह पहन कर इनको अभी तक दिखाया ही नहीं है,आज पहन कर दिखा दीजिये। शायद पहले से तय रहा हो या आदत के मुताबिक संगीता तुरंत अंदर के तीसरे कमरे मे जाकर वह झीना गुलाबी चिक़ेंन का सलवार-कुर्ता पहन कर आ गई। शालिनी के टोकने पर संगीता का जवाब था कि आपने इसके साथ दुपट्टा दिया ही नहीं था इसलिए नहीं डाला और शायद चूंकि बटन भी नहीं दिये थे इसी लिए नहीं लगे थे । शालिनी ने भी बिना चूके कह दिया कि ब्रा  भी तो नहीं दिया था तो वह क्यों पहना। पल भर भी गवाए बिना संगीता ने कुर्ता उतार कर ब्रा हटा दिया और पाँच-सात मिनट बाद  उसके बगैर ही पहन लिया। शाम की चाय के बाद शालिनी के कहने पर संगीता ने फिर सलवार-सूट के स्थान पर अपने कपड़े धारण करने हेतु वहीं लेकर आ गई जहां हम लोग बैठे थे और बड़े आराम से बिना किसी झिझक के बदलाव किया । नन्द -भौजाई का व्यवहार था तो चौंकाने वाला ही परंतु उस ओर गहराई से कभी न सोचा और जैसा शालिनी बताती रहीं कि संगीता को प्रदर्शन मे आनंद आता है और मौका कभी-कभी ही मिलता है इसलिए उनको कह देते हैं -शालिनी से भी गहराई से तर्क-वितर्क नहीं किया। 

Link to this post-



2 टिप्‍पणियां:

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!