मंगलवार, 6 मार्च 2012

2012 के चुनाव मे सक्रियता

आगरा 1992/93-भाग 7,8,9,10 और 1994/95 भाग-1 की किश्ते ड्राफ्ट मे सेव होने के बावजूद उन्हे रोके रख कर  लगातार तीसरी बार विशिष्ट लेख देने का कारण हाल मे सम्पन्न उत्तर प्रदेश के चुनावो मे सक्रिय रहने के कारण प्राप्त कुछ विशेष अनुभव हैं। 'क्रांतिस्वर' मे तो बीच-बीच मे इस संबंध मे उल्लेख किया था किन्तु इस ब्लाग पर प्रकाशन रोक रखा था। आज जब चुनाव परिणाम करीब-करीब घोषित हो गए हैं और मलीहाबाद (सु ) सीट जहां से हमारी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी ने चुनाव लड़ा था सपा का प्रत्याशी चुनाव जीत चुका है,कुछ बातो  का उल्लेख करना नितांत आवश्यक प्रतीत होता है।

1989 मे दयाल बाग (आगरा ) से भाकपा के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा ने कामरेड ओम प्रकाश को निर्दलीय चुनाव इस लिए लड़ा दिया था कि प्रदेश स्तर पर पार्टी का समझौता जनता दल से था और आगरा मे पार्टी उससे संतुष्ट न थी। प्रदेश सचिव कामरेड जगदीश नारायण त्रिपाठी को वस्तु-स्थिति अवगत थी और उन्होने आगरा के जिला मंत्री को लाईन क्लीयर दे दिया था। इसी प्रकार 1991 मे भी वही प्रत्याशी पुनः चुनाव लड़ना चाहते थे किन्तु प्रदेश नेतृत्व ने उन्हे दयालबाग के स्थान पर आगरा केंट से चुनाव लड़ने को कहा जबकि दयालबाग मे उनकी स्थिति पहले मजबूत रही थी। दयालबाग मे तब सांसद हेतु भाजपा को वोट मिले थे जबकि विधायक हेतु  भाकपा को। जनता दल के विजय सिंह राणा इसलिए जीत गए थे कि भाजपा के वोट भाकपा मे चले आए थे। केंट मे पार्टी की और प्रत्याशी की स्थिति मजबूत न थी। प्रत्याशी को चुनाव चिन्ह भी आबंटित न हो सका था। जिला मंत्री कामरेड रमेश मिश्रा के आदेश पर मै लखनऊ आया था और त्रिपाठी जी के मैनपुरी के दौरे पर होने के कारण तत्कालीन सहायक राज्य सचिव (अब वरिष्ठ नेता ) कामरेड अशोक मिश्रा जी को जिला मंत्री जी का पत्र सौंपा था। अशोक मिश्रा जी ने आगरा केंट से कामरेड ओम प्रकाश को भाकपा का अधिकृत प्रत्याशी घोषित करते हुये एलाट किए गए चिन्ह पर भाकपा के पक्ष मे वोट देने की अपील का पत्र मेरे माध्यम से भिजवा दिया था। 1989 मे निर्दलीय और 1991 मे अधिकृत पार्टी प्रत्याशी के प्रचार मे आगरा भाकपा जिला मंत्री के निर्देशन मे पूरी तरह सक्रिय रही थी।पार्टी की विभिन्न कमेटिया और कामरेड्स पूरी क्षमता से पार्टी प्रत्याशी के साथ लगे रहे थे।

2012 के चुनावो मे भाकपा ने लखनऊ से एकमात्र मलीहाबाद (सु ) सीट से कामरेड महेंद्र रावत को खड़ा किया था जो पहले बख्शी का तालाब से निर्दलीय चुनाव लड़ते रहे थे ,वह इस बार भी वहीं से पार्टी का टिकट चाहते थे किन्तु पार्टी के निर्देश पर उन्होने मलीहाबाद (सु ) से नामांकन किया। पार्टी का अधिकृत चुनाव चिन्ह -हंसिया और बाली भी उन्हे एलाट था। किन्तु उन्हे अपना पूरा प्रचार अभियान एक निर्दलीय के तौर पर खुद ही संचालित करना पड़ा। जिला पार्टी के कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से कामरेड महेंद्र रावत के साथ जरूर थे लेकिन पार्टी स्तर पर किसी कमेटी का निर्देशन या सहयोग उनके साथ नही रहा।कुछ वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्यो का दृष्टिकोण था कि कामरेड महेंद्र रावत को पार्टी के एक पूर्व बागी सदस्य को हराने के लिए खड़ा किया है । उन लोगो ने प्रचार मे भी  यही कहा ।  चुनाव परिणाम भी इसी प्रकार के आए। जिन बागी साहब को हराने का लक्ष्य रखा था वह 2215 वोट से हार भी गए।

चूंकि कामरेड महेंद्र रावत पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी रहे इसलिए उनकी जरूरत के मुताबिक जो सहयोग उन्होने मुझसे मांगा मैंने अपनी क्षमता के अनुसार प्रदान किया। अपने ब्लाग मे ,फेसबुक नोट्स के द्वारा भी उनके संदेश का प्रसार किया। उनके साथ व्यक्तिगत रूप से प्रचार मे भी गया। जिले मे मुझसे वरिष्ठ कुछ लोगो को मेरे द्वारा उन्हे सहयोग करना रास न आया। उन लोगो द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से इसकी अभिव्यक्ति भी हो गई। मुझे हैरानी इस बात की है कि आगरा मे प्रदेश नेतृत्व पर अपनी बात समझा कर वह जिलामंत्री चुनाव लड़वाते थे और पूरी पार्टी को सक्रिय करते थे जबकि लखनऊ मे प्रदेश नेतृत्व द्वारा अधिकृत रूप से खड़े किए गए प्रत्याशी को पार्टी स्तर पर सहयोग नहीं दिया गया।

भाकपा ने जब संसदीय लोकतन्त्र को अपनाया है और केरल मे चुनाव से ही सबसे पहले सरकार भी बनाई है बाद मे सी पी एम के साथ कई प्रदेशो मे सरकार मे रही है तो लखनऊ मे इस बार आत्मघाती कदम क्यो उठाया गया ?मेरे समझ के मुताबिक नैतिक मूल्यो का पालन न करना ही इसका कारण है। जब पार्टी ने एक प्रत्याशी को खड़ा किया है तो पूरी पार्टी को पूरी क्षमता से उसे जिताने का प्रयास करना चाहिए था जो न करना अनैतिक कृत्य माना जाना चाहिए। शायद यही वजह है कि पार्टी आज तक जनता को अपने पक्ष मे खड़ा नहीं कर पाई है। किन्तु अब जब इसी माह की 27 से 31 तारीख तक पटना मे 21 वी पार्टी कान्फरेंस होने जा रही है केन्द्रीय  नेतृत्व को ठोस निर्णय लेकर जन बल को अपने पक्ष मे खड़ा करने का प्रयास करना चाहिए। 'मनसा-वाचा-कर्मणा ' मुट्ठी भर लोग भी संगठित होकर सारे संसार को उखाड़ फेंक सकते है ऐसा कहना है स्वामी विवेका नन्द का। तो क्यो नहीं एक संगठित राष्ट्रीय पार्टी सफलता प्राप्त कर सकती। 

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3 टिप्‍पणियां:

  1. गुरूजी प्रणाम आपसी द्वन्द अपने लिए कैंसर बन जाती है ! स्वार्थ से ऊपर -पार्टी को कार्य करनी चाहिए !

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