डॉ विनय आहूजा को हाल बता कर दवा लिखवा लेते थे। 7-8 दिन पीछे वह शालिनी को भी बुलवा लेते थे। मै दवा सौंप कर दिन मे दुकानों पर थोड़ा-थोड़ा काम निबटाने चला जाता था। सभी दूकानदारों की तरफ से पूर्ण सहयोग रहा। एक दिन भाकपा,आगरा के सहायक जिला मंत्री कामरेड दीवान सिंह भी घर पर शालिनी को देखने आए थे उनके सामने भी शालिनी ने दवा फेंक दी थी तो वह बोले थे कि भाभी जी आप ठीक क्यों नहीं होना चाहतीं?ठीक से दवा करें डॉ विनय एक्सपर्ट हैं और उनकी दवाएं काफी फायदा करती हैं आप दवा खाती नहीं इसी लिए अभी तक लाभ नही हुआ। शायद उनके कहने का कुछ असर हुआ और 4-5 रोज मे शालिनी को काफी लाभ भी हुआ । 07 जनवरी 1994 को यशवन्त को स्कूल छोड़ कर डॉ विनय के पास शालिनी को दिखाने ले गए थे वह भी इलाज से संतुष्ट हुये। लौटते मे शालिनी ने कहा कि अब हम दवा ठीक से ले रहे हैं जल्दी ही बिलकुल ठीक हो जाएँगे मम्मी के यहाँ से कोई देखने नहीं आया है हमे उनके पास ले चलो ताकि कहें कि एक बार तो देख जाओ सब कहते हैं पीहर वाले कैसे हैं?उस समय उनकी ख़्वाहिश को देखते हुये न चाहते हुये भी राजा-की -मंडी क्वार्टर पर ले गए।
शालिनी ने अपनी माँ से शिकवा किया कि देखने भी क्यों नहीं आई उन्होने झूठ कह दिया कि चिट्ठी भेजी थी। क्या एक माँ शहर मे मौजूद होते हुये अपनी बीमार बेटी को देखने न जाकर सिर्फ चिट्ठी भेज कर तसल्ली रख सकती है ?सरोजनी देवी माथुर का तो यही अजूबा था। संगीता ने फिर बचाव का रास्ता अख़्तियार करते हुये कहा कि मम्मी जी की तो वही बताएं किन्तु यदि विजय बाबू आकर ले जाएँ तो मै परसों आपको देखने आ जाऊँगी। अब प्रश्न यह था कि यदि मै बुलाकर लाता हूँ तो अपने आप देखने आने की बात कहाँ रहती है?शालिनी ने सुझाव दिया कि ड्यूटी जाते वक्त मै संगीता को क्वार्टर से साथ लेकर कमला नगर मार्केट मे छोड़ दूँ और फिर ड्यूटी निकल जाऊ इधर से वह रिक्शा करके लौट जाएंगी। 09 जनवरी को जब वहाँ पहुंचे तो संगीता को बुखार आ रहा है ऐसा कथन था उनकी सास साहिबा का । किन्तु संगीता ने कहा कि वह एकबार पहले अपना वचन पूरा नहीं कर पाई थीं ,बुखार कोई समस्या नहीं है शालिनी रानी को देखने जरूर जाएंगे। कपड़े बदल कर शाल ओढ़ कर और छोटी बेटी को साथ लेकर वह मोपेड़ पर कमला नगर आई परंतु मेन मार्केट तक न लाकर मैंने उन्हे कालोनी की शुरुआत मे छोड़ दिया और खुद ड्यूटी चला गया।
मै जल्दी ही लौटता था फिर भी तब तक संगीता को मौजूद देख कर आश्चर्य हुआ। क्योंकि जाहिरा तौर पर वह मेरे गैर हाजिरी मे आई थी और उन्हे लौट चूकना था, किन्तु बउआ -बाबूजी ने कहा कि शाम को मुझ से मिल कर ही वह लौटें इसलिए रुकी रहीं । शाम को फिर शालिनी ने खुद ही पकौड़ी और चाय बनाई,ऊपर के अपने कमरे मे उन्हें सोफ़े पर बैठा कर पिलाई। दोनों के बच्चे नीचे खेलते खाते रहे। शालिनी ने इशारे से मुझे छत पर बुला कर कहा कि कुछ खास नोट किया। मुझे मतलब समझ नहीं आया तो उन्होने स्पष्ट किया कि जो ब्लाउज संगीता ने दुबे टेलर्स ,कमला नगर मे सिलवाया था वही पहन कर आई हैं जो उन लड़कियों ने बेहद टाइट सिल दिया है।केवल एक ही हुक लग पा रहा है और बाकी खुला है । शाल ओढ़ने से मुझे कैसे पता चलता?अतः शालिनी बोली अभी तमाशा दिखवाते हैं । वह नीचे से थोड़ी पकौड़ी और सेंक लाई और मुझसे कहा कि गरम-गरम अपने हाथ से भाभी जी को एक पकौड़ी तो खिला देते। वह नखरे दिखाती हुई पीछे झुकती गई जिससे कि सामने से शाल खिसकता रहा और अंततः शालिनी की कोहनी लगने से लुढ़क गया। सामने तस्वीर साफ थी ब्लाउज तो टाइट था जिस कारण हुक नहीं लग पाये किन्तु ब्रा न पहनने का कारण क्या था यह स्पष्ट न था।सबसे बड़ी बात यह कि ऐसे कपड़े पहन कर आना ही क्यो हुआ ? शालिनी ने बताया कि वह उन्हे दुबे टेलर्स की लड़कियो की बेवकूफी दिखाना चाहती थी इसलिए पहन कर आई थी। लेकिन फिर शालिनी ने बाद मे केवल बता देने के बजाए मुझे सीन क्यो दिखाया ?शक-शुबहा होने की बाते थी।
तय प्रोग्राम से उन्हे रिक्शा से लौटना था अतः बाजार तक यशवन्त को रिक्शा पर बैठाने भेज दिया था। काफी देर तक वह नहीं लौटा तो शक हुआ कि कहीं बिना बताए उसे तो नहीं ले गई हैं। अतः बाजार मे देखने गया तीनों जन टहल रहे थे। यशवन्त ने कहा कि माइंजी को रिक्शा नहीं मिल रहा है। सबको फिर घर लौटा कर लाये और मोपेड़ से बैठा कर पहुंचाया। किन्तु इस वक्त मै क्वार्टर तक नहीं गया और संगीता तथा उनकी बिटिया को रेलवे ओवर ब्रिज पर सीढ़ियों के पास छोड़ दिया। जब वे लोग नीचे उतर गए तो पुल से ही मोपेड़ बैक करके मै वापिस आ गया । हालांकि संगीता घर तक चलने को कह रही थीं परंतु मैंने न जाना ही मुनासिब समझा। बउआ-बाबूजी को इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि संगीता कोई खुद शालिनी को देखने नहीं आई थी बल्कि शालिनी उनको न्यौत कर आई थी और मुझसे बुलवाया तथा पहुंचवाया था। कहने को संगीता 16 जनवरी अपनी शादी की सालगिरह का बुलावा भी दे गई थीं।
इत्तिफ़ाक से 16 तारीख को हमारी पार्टी की एक बैठक भी पड़ गई।लिहाजा यशवन्त और शालिनी को क्वार्टर पर छोडते हुये मै सीधे पार्टी कार्यालय निकल गया। बैठक की समाप्ती के बाद ही उधर आया। शरद तो सुबह से ही अपनी ड्यूटी पर थे। उनकी माता और सब बच्चे भोजन कर चुके थे। मैंने वहाँ भोजन न करने की बात कही थी परंतु शालिनी और संगीता ने मेरे इंतजार मे भोजन नहीं किया था। न चाहते हुये मजबूरी मे वहाँ भोजन करना ही पड़ा। बारामदे मे भोजन करते हुये शालिनी ने कहा कि आप भाभी जी से चिढ़ते हैं फिर भी आपके इंतजार मे वह अब तक भूखी रह गई। जवाब मे मैंने कहा मै कभी भी किसी से भी नहीं चिढ़ता हूँ लेकिन सही-गलत के आधार पर अलग-अलग बातों का समर्थन या विरोध करता हूँ। फैसलों मे व्यक्तिगत चाहत या नफरत से प्रभावित नहीं होता हूँ। प्रत्येक कदम एक निश्चित मर्यादा के तहत ही उठाता हूँ। संगीता ने कहा कि आज उनकी शादी की सालगिरह है और उनके पति आज भी डबल ड्यूटी करेंगे क्या मै उसका समर्थन करूंगा। किसी के घरेलू मामलों मे कोई भी प्रतिक्रिया देने से मैंने इंकार किया।
हालांकि डॉ विनय आहूजा के इलाज से काफी लाभ हुआ था परंतु शालिनी की माता ने कहा की एक बार राजा-की-मंडी स्थित डॉ रमेश चंद्र उप्रेती को भी दिखा लें। हमारे बउआ-बाबूजी ने कहा कि उन लोगों की तसल्ली के लिए दिखा दो। एक दिन यशवन्त के स्कूल जाने के बाद मोपेड़ से शालिनी को पहले क्वार्टर ले गए जहां से शालिनी की माता ने उनकी छोटी भतीजी को साथ भेज दिया। डॉ उप्रेती ने चेक अप के बाद साफ बताया कि आँतें सूज कर लटक गई हैं। एक साल इलाज करना पड़ेगा यदि लाभ न हुआ तो आपरेशन कराना होगा। उन्होने दवाएं दी और कडा परहेज बताया कि चाय न पीये बहुत मन हो तो दिन मे केवल एक कप ही ले। तली-भुनी चीजे न खाये ,मैदा के बने पदार्थ बिलकुल न ले। क्वार्टर पर शालिनी को पहुंचा कर मै थोड़ी देर के लिए पार्टी कार्यालय चला गया जब लौटा तो देखता हूँ कि शालिनी की माता ने बाजार की बनी मैदा की मठरी उनके हाथ मे पकड़ा रखी थी और एक ग्लास चाय पीने को दी हुई थी। मैंने पूछा कि आप कैसी माँ हैं जो आपके ही बताए डॉ ने परहेज कहा है उसके खिलाफ अपनी ही बेटी का बिगाड़ करने पर आमादा हैं?उनका जवाब था आप कडा परहेज कराएंगे इसलिए अभी दे दिया फिर कहाँ खा पाएगी? मैंने शालिनी के हाथ से वह मठरी लेकर उनकी भतीजी को दे दी जिसने बताया कि भुआ तो दो मठरी अभी-अभी खा भी चुकी हैं। चाय भी मैंने पूरी न पीने दी और तुरंत लेकर घर लौट आया।
शालिनी ने अपनी माँ से शिकवा किया कि देखने भी क्यों नहीं आई उन्होने झूठ कह दिया कि चिट्ठी भेजी थी। क्या एक माँ शहर मे मौजूद होते हुये अपनी बीमार बेटी को देखने न जाकर सिर्फ चिट्ठी भेज कर तसल्ली रख सकती है ?सरोजनी देवी माथुर का तो यही अजूबा था। संगीता ने फिर बचाव का रास्ता अख़्तियार करते हुये कहा कि मम्मी जी की तो वही बताएं किन्तु यदि विजय बाबू आकर ले जाएँ तो मै परसों आपको देखने आ जाऊँगी। अब प्रश्न यह था कि यदि मै बुलाकर लाता हूँ तो अपने आप देखने आने की बात कहाँ रहती है?शालिनी ने सुझाव दिया कि ड्यूटी जाते वक्त मै संगीता को क्वार्टर से साथ लेकर कमला नगर मार्केट मे छोड़ दूँ और फिर ड्यूटी निकल जाऊ इधर से वह रिक्शा करके लौट जाएंगी। 09 जनवरी को जब वहाँ पहुंचे तो संगीता को बुखार आ रहा है ऐसा कथन था उनकी सास साहिबा का । किन्तु संगीता ने कहा कि वह एकबार पहले अपना वचन पूरा नहीं कर पाई थीं ,बुखार कोई समस्या नहीं है शालिनी रानी को देखने जरूर जाएंगे। कपड़े बदल कर शाल ओढ़ कर और छोटी बेटी को साथ लेकर वह मोपेड़ पर कमला नगर आई परंतु मेन मार्केट तक न लाकर मैंने उन्हे कालोनी की शुरुआत मे छोड़ दिया और खुद ड्यूटी चला गया।
मै जल्दी ही लौटता था फिर भी तब तक संगीता को मौजूद देख कर आश्चर्य हुआ। क्योंकि जाहिरा तौर पर वह मेरे गैर हाजिरी मे आई थी और उन्हे लौट चूकना था, किन्तु बउआ -बाबूजी ने कहा कि शाम को मुझ से मिल कर ही वह लौटें इसलिए रुकी रहीं । शाम को फिर शालिनी ने खुद ही पकौड़ी और चाय बनाई,ऊपर के अपने कमरे मे उन्हें सोफ़े पर बैठा कर पिलाई। दोनों के बच्चे नीचे खेलते खाते रहे। शालिनी ने इशारे से मुझे छत पर बुला कर कहा कि कुछ खास नोट किया। मुझे मतलब समझ नहीं आया तो उन्होने स्पष्ट किया कि जो ब्लाउज संगीता ने दुबे टेलर्स ,कमला नगर मे सिलवाया था वही पहन कर आई हैं जो उन लड़कियों ने बेहद टाइट सिल दिया है।केवल एक ही हुक लग पा रहा है और बाकी खुला है । शाल ओढ़ने से मुझे कैसे पता चलता?अतः शालिनी बोली अभी तमाशा दिखवाते हैं । वह नीचे से थोड़ी पकौड़ी और सेंक लाई और मुझसे कहा कि गरम-गरम अपने हाथ से भाभी जी को एक पकौड़ी तो खिला देते। वह नखरे दिखाती हुई पीछे झुकती गई जिससे कि सामने से शाल खिसकता रहा और अंततः शालिनी की कोहनी लगने से लुढ़क गया। सामने तस्वीर साफ थी ब्लाउज तो टाइट था जिस कारण हुक नहीं लग पाये किन्तु ब्रा न पहनने का कारण क्या था यह स्पष्ट न था।सबसे बड़ी बात यह कि ऐसे कपड़े पहन कर आना ही क्यो हुआ ? शालिनी ने बताया कि वह उन्हे दुबे टेलर्स की लड़कियो की बेवकूफी दिखाना चाहती थी इसलिए पहन कर आई थी। लेकिन फिर शालिनी ने बाद मे केवल बता देने के बजाए मुझे सीन क्यो दिखाया ?शक-शुबहा होने की बाते थी।
तय प्रोग्राम से उन्हे रिक्शा से लौटना था अतः बाजार तक यशवन्त को रिक्शा पर बैठाने भेज दिया था। काफी देर तक वह नहीं लौटा तो शक हुआ कि कहीं बिना बताए उसे तो नहीं ले गई हैं। अतः बाजार मे देखने गया तीनों जन टहल रहे थे। यशवन्त ने कहा कि माइंजी को रिक्शा नहीं मिल रहा है। सबको फिर घर लौटा कर लाये और मोपेड़ से बैठा कर पहुंचाया। किन्तु इस वक्त मै क्वार्टर तक नहीं गया और संगीता तथा उनकी बिटिया को रेलवे ओवर ब्रिज पर सीढ़ियों के पास छोड़ दिया। जब वे लोग नीचे उतर गए तो पुल से ही मोपेड़ बैक करके मै वापिस आ गया । हालांकि संगीता घर तक चलने को कह रही थीं परंतु मैंने न जाना ही मुनासिब समझा। बउआ-बाबूजी को इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि संगीता कोई खुद शालिनी को देखने नहीं आई थी बल्कि शालिनी उनको न्यौत कर आई थी और मुझसे बुलवाया तथा पहुंचवाया था। कहने को संगीता 16 जनवरी अपनी शादी की सालगिरह का बुलावा भी दे गई थीं।
इत्तिफ़ाक से 16 तारीख को हमारी पार्टी की एक बैठक भी पड़ गई।लिहाजा यशवन्त और शालिनी को क्वार्टर पर छोडते हुये मै सीधे पार्टी कार्यालय निकल गया। बैठक की समाप्ती के बाद ही उधर आया। शरद तो सुबह से ही अपनी ड्यूटी पर थे। उनकी माता और सब बच्चे भोजन कर चुके थे। मैंने वहाँ भोजन न करने की बात कही थी परंतु शालिनी और संगीता ने मेरे इंतजार मे भोजन नहीं किया था। न चाहते हुये मजबूरी मे वहाँ भोजन करना ही पड़ा। बारामदे मे भोजन करते हुये शालिनी ने कहा कि आप भाभी जी से चिढ़ते हैं फिर भी आपके इंतजार मे वह अब तक भूखी रह गई। जवाब मे मैंने कहा मै कभी भी किसी से भी नहीं चिढ़ता हूँ लेकिन सही-गलत के आधार पर अलग-अलग बातों का समर्थन या विरोध करता हूँ। फैसलों मे व्यक्तिगत चाहत या नफरत से प्रभावित नहीं होता हूँ। प्रत्येक कदम एक निश्चित मर्यादा के तहत ही उठाता हूँ। संगीता ने कहा कि आज उनकी शादी की सालगिरह है और उनके पति आज भी डबल ड्यूटी करेंगे क्या मै उसका समर्थन करूंगा। किसी के घरेलू मामलों मे कोई भी प्रतिक्रिया देने से मैंने इंकार किया।
हालांकि डॉ विनय आहूजा के इलाज से काफी लाभ हुआ था परंतु शालिनी की माता ने कहा की एक बार राजा-की-मंडी स्थित डॉ रमेश चंद्र उप्रेती को भी दिखा लें। हमारे बउआ-बाबूजी ने कहा कि उन लोगों की तसल्ली के लिए दिखा दो। एक दिन यशवन्त के स्कूल जाने के बाद मोपेड़ से शालिनी को पहले क्वार्टर ले गए जहां से शालिनी की माता ने उनकी छोटी भतीजी को साथ भेज दिया। डॉ उप्रेती ने चेक अप के बाद साफ बताया कि आँतें सूज कर लटक गई हैं। एक साल इलाज करना पड़ेगा यदि लाभ न हुआ तो आपरेशन कराना होगा। उन्होने दवाएं दी और कडा परहेज बताया कि चाय न पीये बहुत मन हो तो दिन मे केवल एक कप ही ले। तली-भुनी चीजे न खाये ,मैदा के बने पदार्थ बिलकुल न ले। क्वार्टर पर शालिनी को पहुंचा कर मै थोड़ी देर के लिए पार्टी कार्यालय चला गया जब लौटा तो देखता हूँ कि शालिनी की माता ने बाजार की बनी मैदा की मठरी उनके हाथ मे पकड़ा रखी थी और एक ग्लास चाय पीने को दी हुई थी। मैंने पूछा कि आप कैसी माँ हैं जो आपके ही बताए डॉ ने परहेज कहा है उसके खिलाफ अपनी ही बेटी का बिगाड़ करने पर आमादा हैं?उनका जवाब था आप कडा परहेज कराएंगे इसलिए अभी दे दिया फिर कहाँ खा पाएगी? मैंने शालिनी के हाथ से वह मठरी लेकर उनकी भतीजी को दे दी जिसने बताया कि भुआ तो दो मठरी अभी-अभी खा भी चुकी हैं। चाय भी मैंने पूरी न पीने दी और तुरंत लेकर घर लौट आया।
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बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
गुरूजी प्रणाम यह भी आश्चर्य भरा रहा !
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