रविवार, 25 मार्च 2012

आगरा/1994 -95 / (भाग-3 )

भाकपा छोड़ कर सपा मे शामिल होना हींग की मंडी के दुकानदारो को अच्छा नहीं लगा क्योंकि वे सभी भाजपा के समर्थक थे और सपा को मुस्लिम समर्थक मानते थे ,भाकपा से उन्हे दिक्कत न थी क्योंकि रूस से व्यापार करने के कारण कम्युनिस्टो के वे संपर्क मे थे। मेरा होटल मुगल का केस जो मै मिश्रा जी की सलाह पर कामरेड जगदीश को सौंप (कामरेड हरीश आहूजा के भाकपा छोडने के बाद ) चुका था। चूंकि शालिनी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी कभी फायदा दीखता था और कभी परेशानी हो जाती थी। मै दोबारा लखनऊ या बाराबंकी जाकर कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह अथवा कामरेड मित्र सेन यादव से न मिल सका अन्यथा उनके द्वारा मुख्यमंत्री मुलायम सिंह जी से लेबर कोर्ट मे कहला कर फैसला अपने पक्ष मे कराने को कहता। परंतु इसी भय से मिश्रा जी ने कामरेड जगदीश से कह कर लेबर कोर्ट के पीठासीन अधिकारी (जो रिटायर्ड IAS होते हैं )को कहला दिया कि वह मेरे श्रमिक प्रतिनिधि नही हैं। मुगल मेनेजमेंट से मिल कर इन लोगों ने यह जजमेंट लिखवा लिया कि "Petitioner is no more interested" और इस प्रकार होटल मुगल एक्स पार्टी केस जीत गया। थोड़े दिनो बाद  वह पीठासीन अधिकारी मेरठ स्थानांतरित हो गए उनके पुत्र को कोई गंभीर बीमारी भी ग्रस्त कर गई किन्तु मेरे केस को तो वह बिगाड़ ही गए। इन सब बातो का पता भी तुरंत न चल सका जो हाई कोर्ट मे अपील करता और न ही तब यह सोचने की फुर्सत थी। जैसे तैसे घर और दुकानों की नौकरी चलाना था। सपा मे पूर्ण सक्रिय भी न हो सका।

शायद बीमारी की वजह से ही शालिनी को इस वर्ष गर्मी ज्यादा सता रही थी। रसोई की खिड़की के शीशे तोड़ कर उनके स्थान पर जाली लगा दी थी 08 मई को । इससे पहले दिन सुबह शालिनी अपनी भाभी से मिलने गई थीं उनकी माँ और भाई को कहीं ज्यादा दिनो के लिए जाना था सीमा को छोडने को योगेन्द्र ने मना कर दिया था। शालिनी की माँ ने बड़ी ही बेशर्मी से मुझसे शालिनी को उनकी गैर हाजिरी मे छोडने को कहा जबकि वह एक बार भी शालिनी को देखने नहीं आई थी और न ही शरद आए थे। मैंने भी दो टूक कह दिया आप लोग शालिनी की बीमारी मे देखने भी नहीं आए,पहले मेरे द्वारा मदद करने पर मुझे आपने व आपके जेठ ने बेवकूफ करार दिया अतः  अब मै यहाँ शालिनी को  नही रहने दूंगा। तब बनवारी लाल भी कुछ दिनो के लिए प्रताप गढ़ गए थे शायद अपना सामान वहाँ से लाने को। खरी बात बुरी लाग्ने के कारण वह उठ कर बच्चो के साथ टी वी देखने चली गई। संगीता ने स्वीकार किया कि मेरा तर्क गलत नही था और अपनी मजबूरी शालिनी से बता कर कहा कि विजय बाबू को दूसरे-तीसरे दिन भेज कर हाल-चाल ले लें। अब मुझे भाकपा कार्यालय राजा-की-मंडी नही जाना होता था लिहाजा खास तौर पर वहीं आना होता। उनही के सामने शालिनी ने वायदा कर दिया और उनकी बीमारी के मद्दे नजर इस बात को अस्वीकार न कर सका। चूंकि अक्सर दुकानों से जल्दी उठ जाता था इसलिए काम अधिक होने पर कभी -कभी देर तक रुकना भी पड़ता था। जिस दिन शालिनी ने क्वार्टर होकर आने को कहा उसी दिन देर भी हो गई। पहले न जाने का विचार किया परंतु यह सोच कर कि शालिनी यह मतलब न निकाले कि मैंने वहाँ  जाने से बचने हेतु दुकानों पर ज्यादा समय लगा दिया,अंततः चला गया। दोनों लडकियाँ सो चुकी थीं।संगीता ने दरवाजा बाहर के कमरे की लाइट जलाए बगैर खोला था क्योंकि साड़ी के बगैर थीं। सीधे अंदर के बारामदे मे ले गई और चारपाई पर बैठा कर रसोई मे चाय बनाने लगीं यह कहने के बावजूद कि अब चाय का समय नही है।चाय लेकर जब आई तो सामने के वस्त्र भी खुल कर सिर्फ लटके थे तर्क था गर्मी बेहद है बिना कूलर के रहना मुश्किल है। मैंने कहा कि इसी कारण मै आपके यहाँ नहीं आना चाहता हूँ आपको सबके सामने गर्मी नहीं लगती सिर्फ अकेले मे लगती है। जवाब की जगह सिर्फ हँसती रहीं। चलने के समय बाहर के कमरे मे भी वैसे ही आई और बोलीं कि आप बाहर से बंद कर देंगे तब अंदर से सांकल कुंडी लगा लेंगे। घर पर जब शालिनी को बताया तो उन्होने सुन कर कोई प्रतिक्रिया न दी।इतवार के दिन दुकाने बंद रहती थीं अतः खुद शालिनी ने वहाँ चलने को कहा,मै पहुंचा कर घर वापिस लौट आया तो बउआ को भी आश्चर्य था कि तेज गर्मी मे क्यों भागा-दोड़ी की वहीं क्यों नही रुका,अब उनसे क्या कहता ?तीन बजे तक आने को शालिनी ने कहा था कि कम से कम शाम की चाय यहाँ पी लें अन्यथा उनकी भाभी को बुरा लगेगा। सवा तीन के करीब जब पहुंचे तो सब बच्चे अंदर सो रहे थे शालिनी ने दरवाजा खोला था वह और संगीता अंदर के बारामदे मे थे। संगीता पोशाक मे केवल पेटीकोट पहने थीं मैंने शालिनी से पूछा तुम्हारे लिए गर्मी नहीं है । उनका जवाब था गर्मी है लेकिन संगीता (उन्होने भाभी जी शब्द नहीं बोला )को पसंद है अकेले होने पर ऐसे रह लेती हैं सब के सामने तो मजबूरी है ।संगीता बोलीं जब योगेन्द्र बाबू झांसी (शायद किसी बच्चे के जन्म के समय जब सीमा अस्पताल मे थीं )ले गए थे तब वह तो ऐसे मौके तलाशते थे जब कपड़े बदलने हों और पूरा आनंद लेते थे,लेकिन आपको बुरा लगता है। नियम और मर्यादा के विरुद्ध हर बात मुझे बुरी ही लगती है,मैंने भी स्पष्ट कर दिया अतः  चाय के बाद संगीता ने वस्त्र धारण करके बच्चो को जगा कर नाश्ता कराया।

भाकपा से भले ही अलग हो गए थे और सपा मे सक्रिय भी ज्यादा न थे परंतु भाकपा जिला मंत्री के आग्रह पर उनकी फेकटरी मे उनसे मिलते रहते थे। उन्होने बताया कि मेरे हटने के बाद उन्हे ज्यादा परेशान किया जा रहा है और उनका पद पर टिके रहना असंभव होता जा रहा है। सरदार रणजीत सिंह जी के घर पर भी मिल लेते थे उन्होने भी भाकपा छोड़ दी थी वह बहुत खिन्न थे मिश्रा जी और जगदीश जी के व्यवहार से। वह भी मानते थे कि हरीश आहूजा साहब ने इनही दोनों के व्यवहार से खिन्न होकर भाकपा को अलविदा कहा था। सपा नेता रवी प्रकाश अग्रवाल जो शिव पाल सिंह जी के सहपाठी होने के कारण तब प्रभावशाली थे चाहते थे कि मै दो-तीन घंटे का पार्ट टाईम जाब तो बाहर कर लूँ लेकिन उनके यहाँ कुल रु 1200/- मे फूल टाईम ज्वाइन कर लूँ। यह बिलकुल असंभव था कि अपनी आमदनी को घटा लिया जाये हालांकि वह सपा मे कोई उच्च पद दिलाने बात कह रहे थे। उस उच्च पद से मुझे तो कमाई करनी नहीं थी सो मै पदों के लालच के फेर मे नहीं फंसा। 

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